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Digha Temple’s Jagannath Dham Tag Faces Controversy

क्या कोई भी मंदिर जगन्नाथ धाम बन सकता है? 

Digha Jagannath temple controversy
Lord Jagannath Dham 
Some devotees of Lord Jagannath and temple priests in Odisha have expressed strong objection to the West Bengal government's reference to the newly inaugurated temple in Digha as 'Jagannath Dham', arguing that the title has been adopted arbitrarily and lacks traditional authenticity.

आध्यात्मिक दृष्टिकोण से समझें.जगन्नाथ धाम: एक दिव्य स्थान जो शास्त्रों और परंपराओं से प्रमाणित है|जगन्नाथ धाम: केवल पुरी मेंकहीं और नहीं" ही प्रभु का साकहीं और नहीं"क्षात निवास,

जगन्नाथ धाम केवल एक है — श्रीक्षेत्र पुरी

हाल ही में पश्चिम बंगाल के दीघा में एक विशाल जगन्नाथ मंदिर का उद्घाटन किया गया, जिसे राज्य सरकार ने अपने विज्ञापनों में Inauguration of Jagannath Dham कहा। यह बात न केवल चौंकाने वाली है, बल्कि आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से अत्यंत चिंताजनक भी है।

भारत में चार प्रमुख धामों की मान्यता है — बद्रीनाथ, द्वारका, रामेश्वरम और पुरी का जगन्नाथ धाम। इन चारों में भी पुरी का जगन्नाथ धाम एकमात्र ऐसा स्थान है जो भगवान श्रीहरि विष्णु के साक्षात जगन्नाथ स्वरूप की पूजा के लिए विख्यात है। यह मंदिर न केवल भक्ति का केन्द्र है, बल्कि यह भारत की सनातन परंपरा, शास्त्रों, और पाञ्चरात्र आगम पर आधारित पूजा-पद्धति का जीवंत उदाहरण है।

पाञ्चरात्र आगम एक प्राचीन वैष्णव धर्मशास्त्र प्रणाली है, जो भगवान विष्णु की उपासना, मंदिर निर्माण, मूर्ति स्थापना, और पूजा विधियों के बारे में विस्तार से बताती है। इसे वैदिक परंपरा के पूरक के रूप में माना जाता है। भगवान नारायण ने स्वयं पाँच रातों में इसका उपदेश दिया था — इसीलिए इसका नाम पाञ्चरात्र पड़ा। पुरी जगन्नाथ मंदिर की बहुत सी पूजा विधियाँ, पाञ्चरात्र और वैखानस आगमों पर आधारित हैं।

पुरी के श्रीमंदिर में जो पूजा होती है — जैसे ५६ भोग, नियमों से संचालित सेवक समुदाय (सेवायत), द्वादशी नियम, स्नान यात्रा, रथ यात्रा और अनंत रीतियाँ — ये सब शास्त्र-सम्मत और अगम तंत्र के अनुसार निर्धारित की गई हैं। यहाँ की अनंत सेवा परंपरा और नित्य नवरस भोग की जो व्यवस्था है, उसे दुनिया के किसी भी कोने में दोहराना संभव नहीं है।

धाम शब्द संस्कृत का है, जिसका अर्थ होता है — निवास स्थान या ईश्वरीय आवास। धर्मग्रंथों और पुराणों के अनुसार, जहाँ भगवान स्वयं अपनी मूल या स्वयंभू मूर्ति के रूप में विराजमान होते हैं, वह स्थान धाम कहलाता है।

भारत के चार प्रमुख धाम आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार धामों की परंपरा है:

बद्रीनाथ (उत्तर) — भगवान विष्णु का निवास।

द्वारका (पश्चिम) — श्रीकृष्ण का राज्य।

पुरी (पूर्व) — भगवान जगन्नाथ का निवास।

रामेश्वरम (दक्षिण) — भगवान शिव का तीर्थ।

इन चारों को चारधाम कहा जाता है। इनमें से पुरी ही जगन्नाथ धाम के रूप में प्रसिद्ध है, क्योंकि वहाँ श्रीकृष्ण, बलभद्र और सुभद्रा के साथ स्वयंभू रूप में भगवान विराजते हैं, और वहाँ की पूजा, रीतियाँ, 56 भोग, और रथयात्रा सब वैदिक और तांत्रिक ग्रंथों पर आधारित हैं।

धाम का निर्माण कोई साधारण व्यक्ति या सरकार नहीं कर सकती। केवल वही स्थान धाम कहलाता है जहाँ:

भगवान स्वयं प्रकट हुए हों,

शास्त्रों द्वारा उस स्थान की महिमा बताई गई हो,

परंपरागत पूजा-विधि का पालन होता हो।

इसलिए, किसी भी शहर में मंदिर बनाकर उसे 'धाम' कह देना शास्त्रसम्मत नहीं होता — यह एक गंभीर आध्यात्मिक और सांस्कृतिक भूल मानी जाती है।

चाहें कोई मंदिर कितना भी भव्य हो, अगर वहाँ स्वयंभू भगवान की मूर्ति नहीं है और शास्त्रों में उसका उल्लेख नहीं है, तो वह सिर्फ एक "मंदिर" कहलाएगा, "धाम" नहीं।

इसलिए, यदि कोई राज्य या संस्था पुरी मंदिर की प्रतिकृति बनाता है, और उसे भी "जगन्नाथ धाम" कहता है, तो यह न केवल आध्यात्मिक अनुचितता है, बल्कि जगन्नाथ संस्कृति की आत्मा के साथ अन्याय भी है।

पुरी श्रीक्षेत्र भगवान जगन्नाथ का निवास स्थान है — जिसे शास्त्रों में नीलांचल, श्रीक्षेत्र, संक्रांत क्षेत्र आदि नामों से पुकारा गया है। यह धाम केवल भौतिक संरचना नहीं, बल्कि एक चेतन तीर्थ है, जहाँ प्रभु स्वयम् विद्यमान हैं।

अगर किसी और स्थान पर जगन्नाथ जी का मंदिर बनता है, तो यह प्रसन्नता की बात है — क्योंकि यह प्रभु की महिमा को चारों ओर फैलाता है। लेकिन किसी प्रतिकृति मंदिर को धाम कह देना, या प्रचार के लिए उसे श्रीमंदिर के समकक्ष रख देना, न केवल भावनाओं को आहत करता है, बल्कि यह आध्यात्मिक दृष्टि से भी अनुचित है।

ओडिशा वासियों के लिए यह न केवल आस्था का विषय है, बल्कि पहचान और विरासत का सवाल भी है। जगन्नाथ केवल एक नाम नहीं, बल्कि संस्कृति, इतिहास, और अनंत श्रद्धा का प्रतीक हैं।

श्रीजगन्नाथ जहाँ स्वयं बिराजते हैं — वही केवल धाम है। अन्य सभी मंदिर केवल “स्थल” हो सकते हैं, “धाम” नहीं।

इसलिए दीघा में बने मंदिर को "जगन्नाथ मंदिर" कहें — इसमें कोई आपत्ति नहीं। लेकिन उसे "धाम" कहना शास्त्रों, परंपराओं और श्रद्धालुओं की भावनाओं का अपमान है।

जय जगन्नाथ।

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